छत्तीसगढ़ी लोक म हनुमान

Hanumanहनुमान जी ह हमर छत्तीसगढ़ के बड़का देंवता आय. हमर छत्तीसगढिया मनखे मन के हिरदे म हनुमान जती के अड़बड़ सरधा अउ मान सन्नमान हावय. हनुमान जी ह अकेल्ला अइसे देंवता आंय जउन ह अपन बल के खातिर अनार्य मन बर पूजित रहे हें अउ बुद्धि, विवेक संग राम जी के भगति के खातिर आर्य मन के घलव बड़का देंवता के रूप म प्रतिष्ठा पाये हें. राम ले जादा राम के भगत के महत्ता के सेती हनुमान जी ह हिन्दू मन के आराध्य देव के रूप म जन मन म बसे हांवय. हमर देस के जम्मो गांव-सहर मन म आप हनुमान जी के मंदिर खच्चित पाहू. ये बात ह हमर देस के हिरदे म हनुमान जी के सरधा के निसानी आय. हनुमान ल हिन्दू पोथी पुरान म बाधा दूर करईया अउ भय नास करईया देवता के रूप म जाने जाथे. भगवान शंकर के आठ रूद्र के अवतार मन म एक हनुमान जी ल माने जाथे. जिंहा  जिंहा राम कथा होथे, राम के गुनगान होथे उंहा हनुमान जी खच्चित होथे, अइसे हमर मान्यता हावय. राम के किरपा पाये बर हनुमान के भगति करे बर हमर बेद पुरान मन कहिथें. कलजुग म हनुमान के साकछात होए के बारे म मान्यता हावय के, त्रेतायुग म धरम के झंडा फहरा के भगवान राम ह जब पृथ्वी ले बैकुण्ठ लोक गीस त धरम धजा फहराए खातिर हनुमान ल अमर होए के बरदान देवत, धरती म रहे ल कहिस. इही वरदान के सेती हनुमान धरती म साकछात हावय.

सीता के खोज बर सात संमुदर पार करके लंका जाना, घमंडी रावण के गरब ला माटी म मिलाना, सोना के लंका ल बार के माटी बनाना, लछिमन बर संजीवनी बूटी लाना, राम रावन युद्ध म अपन पराक्रम देखाना, अउ सबले बड़े गुन के राम सिया के सेवा करना ये जम्मो ह हनुमान के लोक प्रिय रूप ला प्रदर्सित करथे. हनुमान के इही चरित ह त्रेतायुग म राम के राम रूप ल गढ़े म असल कड़ी के काम करथे. हनुमान के व्यक्तित्व के सहजता अउ राम के सवकई ह उनला भगत ले भगवान बनाथे. हनुमान के इही रूप के सुगंध बेद पुरान रामायन ले फइलत फइलत लोक म तको बगरथे. लोक अपन अनुसार हनुमान के कथा कहिनी ला आघू बढ़ाथे.

हनुमान जी के जनम अउ उंखर चरित गाथा ल आप जम्मो संगी मन जानत होहू, हम नान्हें पन ले हनुमान जी के कथा कहिनी ला सुनत गुनत अउ पढ़त आवत हन. बल, बुद्धि अउ बिद्या के देवइया हनुमान जी के हनुमान चालीसा ल संसार भर के मनखे मन आदर अउ सरधा ले रोज पढ़थें. हमर छत्तीसगढ़ी भाखा म हमर गांव मन म अजा बबा मन के जमाना ले हमर समाज म हनुमान रचे बसे हावय. आवव हमर पारंपरिक  वाचिक परम्परा ले बोलत, सुनत, समझत हम हनुमान जी ल समझे के उदीम करबोन.

छत्तीसगढ़ी लोक गीत, हाना भांजरा अउ किस्सा कहिनी म हनुमान के नाव, उंखर लीला घेरी बेरी आथे. छत्तीसगढ़ के लोक ह हनुमान के कइसन रूप ल स्वीकारत रहिस ये बात हमला, हमर पारंपरिक गीत मन म पता चलथे. छत्तीसगढ़ी पारंपरिक लोक गीत मन म जस गीत म सबले जादा हनुमान के उल्लेख आथे. जउन म उंनला लंगुरे अउ दुलरूवा के नाव ले जाने चिन्हें जाथे. एक छत्तीसगढ़ी जस गीत म हनुमान के जनम के किस्सा आथे तेमा हनुमान के जनम अंजनी के कोंख ले पानी म होए के बात आघू आथे-

झुरहुर झुरहुर नार बहत हे, बइठे अंजनी नहावे
जौं जौं अंजनी अंग नवावे, तौं तौं पीरा जनावे
चार गोड़ एक मूड़ झकत हे, लंबें पूछ जमावे.

लोक अउ सास्त्र के बीच कउनो बिरोध बिचार करे बिना येला सिरिफ लोक म हनुमान के उल्लेख के रूप म लेवन त सुघ्घर होही. ये गीत म मंद मंद बहत नदी म दाई अंजनी के कोंख ले चार गोड़ अउ पूछी वाले बालक के जनम के बिबरन आथे. ये गीत ल जस गीत के रूप म गाए जाथे फेर ये गीत के पहिली दू कड़ी ला पुरातत्वविद राहुल fसंह जी ह छत्तीसगढ़ी साबर मंतर मानथे.

चइत महिना म पुन्नी के दिन जनमें, सुमेरू पर्वत के राजा केसरी अउ माता अंजनी के महाबली बालक के तुरते ताही सुरूज नरायन ला फर समझ के खाए बर झपटई के किस्सा आप जम्मो संगी मन जानत होहू. अतुलित बल, बुद्धि अउ विवेक वाला हनुमान बालके पन ले उतियइल हे वो ह हमर एक ठन गीत म रावन ला बिजरावत कहिथे-

लंका के रावन का मोर करिहैं हो
अढ़ई दिन के मैं हनुमंता, टोर दिएंव गढ़ लंका,
लंका के रावन का मोर करिहैं हो
के तोर लंका टोरौं, कुम्भकरन घननाद ला मारौं,
लंका के रावन का मोर करिहैं हो
पकड़ मंदोदर खैंचत लाहूं, का मोर करिहैं,
लंका के रावन का मोर करिहैं हो

हनुमान जी ल बाल बरमचारी कहे गए हे, नारी परानी ल हनुमान जी ह दुरिहा ले परनाम करथे फेर अतियाचारी रावन ला दपकारे बर मंदोदर ल खैंचत लाहूं तको कहिथे.

जइसे हम आप ल पहिली बतायेन के हमर जस गीत मन म हनुमान ह लंगुरे के नाव ले त कहूं दुलरूवा के नाव ले परगट होथे. हमर हनुमान इक्कईस बहिनी के भईया लंगुरवा’ हे, वो ह जियरा के परान अधार हे. त काबर ना लंगुरवा उतियइल करय. जब नान्हे दुलरूवा लंगुरे बहिनी मन ले रिसा के चल देवय त ओला मनाये खातिर जगद जननी महामाई दुलरू लेवन बर जावय. ओला तुम खेलव दुलरूवा रनबन रनबन कहि के अंगना म खेलावैं. अउ इही मया के खातिर लंगुरे जगावय नवराते . छत्तीसगढ़ के देवी 21 बहिनी मन के लंगुरे बर परेम अइसे के ओखर पोंसे हरिन मिरगवा सगरो बारी ल चर देवय तभो ले बहिनी मन ओखर गलती ला माफ कर देवंय. पंच लकरिया जस गीत म सवाल जवाब आथे-

मोर अहो पूत बंगलिया पुर पाटन के हैं चोलिया,
मोर राम गौर के लंहगा, बिजली अस चमकै डंडिया.
काखर हावय आरी बारी, काखर है फुलवारी,
काखर हावै, हरिन मिरगवा चर गय सगरो बारी
बूढ़ी माय के हावय आरी बारी, धनैया के फुलवारी,
लंगुरे के हावय हरिन मिरगवा चर गए सगरो बारी

लोक मानस तको ला पता हे के इही लंगुरे माता के मयारूक ये इही ह हमर संउख पूरा करही अउ इही हमला माता के तीर पहुचाही त लोक गाथें ‘मोला ढ़ेलुवा झूले के बड़ा संउख, झुला दे भईया लंगुरे, पंहुचा दे हो मईया के अंगना, मैं झूलंव का रे, झूलना हो माय’

हनुमान के लइकई पन के बात के संगें संग हमर गीत मन म ओखर बजरंगबली रूप ह घलव आघू आथे एक ठन गीत म हनुमान के लंका़ के दुवारी म पहरा देवईया लाल बराईन संग मुहा चाही होवत झगरा लरई हो जाथे. लाल बराईन के घेरी बेरी लंगुरे ल बेंदरा, बेंदरा कहई म लंगुरे बगिया जथे, कथे

बेंदरा, बेंदरा झन क बराईन, मैं हनुमंता बीरा
मैं हनुमंता बीरा, ग देव मोर, मैं हनुमंता बीरा
जब सरिस सोन के तोर गढ़ लंका
कलसा ला टोरे फोर हॉ, समुंद म डुबावव,
कलसा ला टोर फोर हां…

Sanjeevaहमर जस गीत म बसे लंगुरे महराज के अइसनेहे कई ठन गीत हावय. जेखर सहारे ओखर रमायन म देहे चरित के कड़ी मन गुंथाथे. अउ गीत मन के बीच आए एक दू पद ले हनुमान के लोक आस्था ह परगट होथे. लोक के आस्था परगट करईया ये गीत मन के संगें संग हमर प्रदेश के नृतत्वशास्त्र अउ पुरातत्वीय परमान म घलो, कोनो ना कोनो रूप म हनुमान के लोक मान्य रूप हमर आघू आथे. हमर छत्तीसगढ़ म अनादि काल ले हनुमान के रचे बसे होए के परमान देवत नृतत्वशास्त्री अशोक तिवारी जी बताथें के ‘छत्तीसगढ़ म अइसन कोनोच मंदिर देवाला नइ होही जेमा हनुमान जी के मूरती नइ होही. ये बात लोक म हनुमान के आस्था ला परगट करथे’. पुरातत्वविद जी.एल.रायकवार जी ह छत्तीसगढ़ म हनुमान जी के महत्ता ला सिद्ध करत बताथें के छत्तीसगढ़ म प्रागैतिहासिक काल के संगें संग एतिहासिक काल म लंगुरे ह लोक स्वीकृति आराध्य के रूप म नजर आथे. उंमन बताथें के इंहा राज करईया कलचुरी वंशी, फणि नागवंशी अउ fछंदक नागवंशी राजा मन जतका मंदिर बनावायें हें तउन म कोनो ना कोनो रूप म हनुमान ल पथरा म साकछात करे गे हावय. उमन बताथें के मूरती कला के अदभुत नमूना के रूप म सीता माता ल राम के मुदरी देवत हनुमान के मूरती लक्ष्मणेश्वर मंदिर खरौद म हावय. ये मंदिर के स्तंभ म हनुमान जी के ये लीला ल पथरा म खोद के उकेरे गए हे, जेला सोमवंशी राजा मन बनवाये रहिन हे.

संजीव तिवारी

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3 Thoughts to “छत्तीसगढ़ी लोक म हनुमान”

  1. shakuntala sharma

    जय हनुमान ज्ञान गुण सागर जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ।

  2. kuber

    संजीव भइया, नमस्कार।
    गजब दिन बीते ले तुंहर लेखनी के आनंद मिलिस। भइया, वेद-शास्त्र मन के बात ह जब लोक म आ के घुरमिंझर जाथे तब लोकशास्त्र के अवतरन होथे, अइसे मोर समझ ह कहिथे। महाभारत के भीम अउ पंडवानी के भीम के नाम अउ काम म फरक दिखथे। पंडवानी म भीम ल धुमरा केहे गे हे। धुमरा ह लोकनायक हरे जेकर चरित, व्यवहार अउ काम ह लोक-व्यवहार अउ लोकमान्यता के मुताबिक रचित हे। ताकत म धुमरा ह भीम के बरोबर हे, पन धुमरा ह भीम ले जादा संकोची, जादा उतियाइल, जादा बेलबेलहा अउ लोकरंजन के काम करने वाला हे। अइसनहे बजरंगबली हनुमान जी के घला लोकरूप ह वोकर शास्त्ररूप ले अलग देखे म मिलथे। लोक ह जउन तरीका ले शास्त्र के कथा ल ले के वोला अपन लोकरंग म ढाल लेथे; विही तरीका ले वेद-शास्त्र मन घला, पौराणिक पात्र मन के जउन चरित ह लोकमान्यता के अनुसार लोकरंग म ढल जाथे, वो कथा मन ल स्वीकार कर लेथे। क्षेपक कथा मन ह अइसनहेच् कथा आवंय। आपके लेख ह सुंदर लगिस। बधाई।
    कुबेर

  3. Narendra Verma

    भई वाह ! आनंद आगे । अइसनेहेच लिखत राहव ।
    नरेन्द्र वर्मा

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